Buddha's Dhamma
बुद्ध के ‘धम्म‘ की परिभाषा हिदू धर्म , इस्लाम धर्म और ईसाई और यहूदी आदि धर्मों से बिलकुल अलग है ।अन्य धर्मों की तरह को बुद्ध विचारधारा को धर्म नही कहते अपितु ‘धम्म‘ कहते हैं । धर्म या मजहब से बुद्ध का कोई लेना देना नही ।धम्म से बुद्ध का अर्थ है – जीवन का शाशवत नियम ,जीवन का सनातन नियम । इससे हिंदू , मुसलमान , ईसाई का कुछ लेना देना नही । इसमें धर्म/मजहबों के झगडे का कोई संबध नही । यह तो जीवन की बुनियाद में जो नियम काम कर रहा है , एस धम्मो सनंतनो, वह जो शशवत नियम है , बुद्ध उसकी बात करते हैं । और जब बुद्ध कहते हैं : धम्म की शरण मे जाओ , तो वे यह नही कहते कि किस धर्म की शरण मे । बुद्ध कहते हैं कि धम्म जीवन जीने के बहतरीन सूत्र या नियम हैं ।ये शशवत नियम क्या है ? उस सूत्र या नियम की शरण मे जाओ । उस नियम से विपरीत मत जाओ नही तो दुख पाओगे । ऐसा नही कि कोई परमात्मा कही बैठा है कि जो तुमको दंड देगा । कही कोई परमात्मा नही है । बुद्ध के लिये संसार एक नियम है । अस्तित्व एक नियम है । ज्ब तुम उसके विपरीत जाते हो तो विपरीत जाने के कारण ही दुख पाते हो |Click on this link- https://amzn.to/2jP8T3i
एक आदमी नशे में डांवाडोल चलता है और अपना घुंटना फ़ोड लेता है । तो ऐसा नही है कि परमात्मा ने शराब पीने का उसे दंड दिया । बुद्ध के यह बातें बचकानी लगती हैं । वह आदमी स्वयं ही गिरा क्योंकि वह गुरुतवाकर्षण के नियम के विरुद्ध जा रहा था । उसकी शराब उसके लिये दंड बन गई । गुरुतवाकर्षण का नियम है कि तुम अगर डांवाडोल हुये, उलटे सीधे चले तो गिरोगे ही क्योंकि धरती का केंद्र अपनी और खीचता है । जो नियम के साथ चलते हैं उन्हें नियम संभाल लेता है और जो नियम के विपरीत चलते हैं वे अपने हाथ स्वयं ही गिर पडते हैं ।
भगवान् बुद्ध जिसे धम्म कहते हैं वह धर्म /मजहब या रीलीजिन से सर्वाथा अलग है । जहाँ मजहब या रीलीजन व्यक्तिगत चीज है वही दूसरी ओर धम्म एक समाजिक वस्तु है । वह प्रधान रुपसे और आवशयक रुप से सामाजिक है । धम्म का मतलब है सदाचरण , जिस का अर्थ है जीवन के सभी क्षेत्रों में एक आदमी का दूसरे आदमी के प्रति अच्छा व्यवहार । इससे स्पस्ट है कि यदि कही परस्पर दो आदमी भी साथ रहते हों तो चाहे न चाहे उन्हें धम्म के लिये जगह बनानी पडेगी । दोनॊ में से एक भी बचकर नही जा सकता । जब कि यदि कही एक आदमी अकेला हो तो उसे किसी धर्म की आवशकता नही धम्म की नहीं । ये तो जनसँख्या नियंत्रण और व्यस्था के नियम होते हैं ।
धम्म क्या है ? धम्म की आवशयकता क्यूं है ? भगवान् बुद्ध के अनुसार धम्म के दो प्रधान तत्व हैं – प्रज्ञा और करुणा ।प्रज्ञा का अर्थ है बुद्धि ( निर्मल बुद्धि या विवेक ) । भगवान् बुद्ध ने प्रज्ञा को अपने धर्म के दो स्तम्भों में से एक माना है , क्योंकि वह नही चाहते थे कि ’ मिथ्या विशवासों ;’ के लिये कोई जगह बचे ।
करुणा कया है ? और किसके लिये ? करुंणा का अर्थ है दया , प्रेम और मैत्री । इसके बगैर न तो समाज जीवित रह सकता है और न तो समाज की उन्नति हो सकती है । ’ प्रज्ञा और करुणा का अलौकिक मिश्रण ही तथागत का धम्म है ।
समयबुद्धा ने कहा है
“धम्म क्या है अगर इसका एक वाक्य में उत्तर देना हो तो मैं यही कहूँगा की ये ऐसा मार्ग या तरीका है जिससे मनुष्य में ऐसी मानसिक योग्यता उत्पन्न हो जाती है जिसके बाद वो अपनी बुद्धि को समय और परिस्थिथि के हिस्साब से सही इस्तेमक करके दुखों से मुक्त जीवन जी सकता है, इतना ही नहीं वो संसार का सर्वज्ञ न्यायकर्ता बन सकता है|बुद्ध का ‘धम्म’ को अन्य धर्मो के सामान न समझना ये काफी अलग है। इसे श्रद्धा और भक्ति से नहीं बुद्धि और समझ से पाओगे। ये किसी सम्प्रदाए विशेष के लिए ही नहीं है सम्पूर्ण मानवता के लिए है। ”
Krishabh Rangare
एक आदमी नशे में डांवाडोल चलता है और अपना घुंटना फ़ोड लेता है । तो ऐसा नही है कि परमात्मा ने शराब पीने का उसे दंड दिया । बुद्ध के यह बातें बचकानी लगती हैं । वह आदमी स्वयं ही गिरा क्योंकि वह गुरुतवाकर्षण के नियम के विरुद्ध जा रहा था । उसकी शराब उसके लिये दंड बन गई । गुरुतवाकर्षण का नियम है कि तुम अगर डांवाडोल हुये, उलटे सीधे चले तो गिरोगे ही क्योंकि धरती का केंद्र अपनी और खीचता है । जो नियम के साथ चलते हैं उन्हें नियम संभाल लेता है और जो नियम के विपरीत चलते हैं वे अपने हाथ स्वयं ही गिर पडते हैं ।
भगवान् बुद्ध जिसे धम्म कहते हैं वह धर्म /मजहब या रीलीजिन से सर्वाथा अलग है । जहाँ मजहब या रीलीजन व्यक्तिगत चीज है वही दूसरी ओर धम्म एक समाजिक वस्तु है । वह प्रधान रुपसे और आवशयक रुप से सामाजिक है । धम्म का मतलब है सदाचरण , जिस का अर्थ है जीवन के सभी क्षेत्रों में एक आदमी का दूसरे आदमी के प्रति अच्छा व्यवहार । इससे स्पस्ट है कि यदि कही परस्पर दो आदमी भी साथ रहते हों तो चाहे न चाहे उन्हें धम्म के लिये जगह बनानी पडेगी । दोनॊ में से एक भी बचकर नही जा सकता । जब कि यदि कही एक आदमी अकेला हो तो उसे किसी धर्म की आवशकता नही धम्म की नहीं । ये तो जनसँख्या नियंत्रण और व्यस्था के नियम होते हैं ।
धम्म क्या है ? धम्म की आवशयकता क्यूं है ? भगवान् बुद्ध के अनुसार धम्म के दो प्रधान तत्व हैं – प्रज्ञा और करुणा ।प्रज्ञा का अर्थ है बुद्धि ( निर्मल बुद्धि या विवेक ) । भगवान् बुद्ध ने प्रज्ञा को अपने धर्म के दो स्तम्भों में से एक माना है , क्योंकि वह नही चाहते थे कि ’ मिथ्या विशवासों ;’ के लिये कोई जगह बचे ।
करुणा कया है ? और किसके लिये ? करुंणा का अर्थ है दया , प्रेम और मैत्री । इसके बगैर न तो समाज जीवित रह सकता है और न तो समाज की उन्नति हो सकती है । ’ प्रज्ञा और करुणा का अलौकिक मिश्रण ही तथागत का धम्म है ।
समयबुद्धा ने कहा है
“धम्म क्या है अगर इसका एक वाक्य में उत्तर देना हो तो मैं यही कहूँगा की ये ऐसा मार्ग या तरीका है जिससे मनुष्य में ऐसी मानसिक योग्यता उत्पन्न हो जाती है जिसके बाद वो अपनी बुद्धि को समय और परिस्थिथि के हिस्साब से सही इस्तेमक करके दुखों से मुक्त जीवन जी सकता है, इतना ही नहीं वो संसार का सर्वज्ञ न्यायकर्ता बन सकता है|बुद्ध का ‘धम्म’ को अन्य धर्मो के सामान न समझना ये काफी अलग है। इसे श्रद्धा और भक्ति से नहीं बुद्धि और समझ से पाओगे। ये किसी सम्प्रदाए विशेष के लिए ही नहीं है सम्पूर्ण मानवता के लिए है। ”
Krishabh Rangare
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